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रविवार, 15 दिसंबर 2019

यदि यह कुत्ता नहीं होता तो अर्जुन नहीं एकलव्य महान धनुर्धर होता #एकलव्य एवं #गुरुद्रोण (Eklavya and Gurudraon)


गुरुभक्त एकलव्य (Eklavya and Gurudron)
जरुरी नहीं की कोई मुझे शिष्य माने  पर में जिन्हे  गुरु मानता हु वे मेरे लिए  इस दुनिया की  सबसे अनमोल धरोहर है |
#एकलव्य

बात महाभारत काल की है जब   सभी राज पुत्र अपने गुरु, आचार्य गुरुद्रोण से गुरु कुल में शिक्षा ले रहे थे तब वहा एक  शिष्य, इस आस से गुरुद्रोण के पास आया की #गुरुद्रोण उसे शिष्य के रूप में स्वीकार करेंगे |

शिष्य : प्रणाम गुरु देव |
गुरुद्रोण : में तो तुम्हारा गुरु नहीं हु फिर तुम मुझे क्यों प्रणाम कर रहे हो |
शिष्य :  आचार्य में आपको अपना गुरु मानता हु, इस लिए मेरे लिए आप ही आदर्णीय  है |
गुरुद्रोण : आपने आने का कारण बताव वत्स्य
शिष्य :  में आपसे शिक्षा लेना चाहता हु
गुरुद्रोण : पर वत्स्य में तो केवल राज पुत्र को ही शिक्षा देने के लिए बाध्य हु
शिष्य : पर में तो आपको अपना गुरु मान चुका हु 
गुरुद्रोण : पर मेने अपना शिष्य  नहीं माना वत्स्य
शिष्य : जो आज्ञा गुरु देव
यह शिष्य वहा से चला जाता है और एकांत में जाकर अपने गुरु की मूर्ति बनाता है पूजा करता है और शिक्षा प्रारम्भ करता है |
यह शिष्य धनुर्विध्या में इतना निपूर्ण हो जाता है की एक दिन हस्तिना पुर का एक कुत्ता इसको देख अपनी प्रवर्ति अनुसार भो भो कर जोर जोर से भुसने लगता है
कुत्ते के भुसने से रियाज करने में शिष्य का ध्यान नहीं हो पा रहा था तो शिष्य  ने अपने बाणो के प्रहार से कुत्ते का मुँह बंद कर दिया |
अब कुत्ता दौड़ता गुरु द्रोण के पास गया
गुरु द्रोण : यह क्या कुत्ते को किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नहीं हुवा और कुत्ते का भोकना भी बंद हो गया | गुरुद्रोण ने विचार किया की ऐसा महान धनुर्धन कोन होगा जिसने यह कार्य किया | इसी विचार  से कुत्ते को लेकर गुरुद्रोण उस धनुर्धर के पास गए और पूछा
गुरुद्रोण : तुमने इस कुत्ते के मुँह में बाण लगाया
शिष्य : जी गुरुदेव
गुरुद्रोण : पर धनुर्धर ऐसा क्यों किया
शिष्य : इस कुत्ते के भोकने से मेरा ध्यान भटक रहा था , में माफी चाहता हु गुरुदेव
गुरुद्रोण : तुम्हारा गुरु कोन है
शिष्य : आप है गुरुदेव
गुरुद्रोण : वो कैसे मेने तो तुम्हे धनुर्विद्या नहीं दी
शिष्य : गुरुदेव आप ही ने दी है , में आपको ही अपना आदर्श मान कर आपकी मूर्ति बनाकर पूरी इच्छा शक्ति से धनुर्विद्या का ज्ञान हासिल किया
गुरुद्रोण : इस हेतु मुझे गुरु दक्षिणा नहीं दोगे
शिष्य : आदेश करे गुरुदेव
गुरुद्रोण : अपने दाहिने हाथ का अंगूठा
शिष्य : बिना एक क्षण गवाये ये लीजिये गुरुदेव  (अंगूठा देते हुए)
गुरुद्रोण : में तुम्हे आशीर्वाद देता हु की तुम युगो युगों तक याद किये जावोगे

इसी का परिणाम है की आज आप भी यह कथा पद रहे हो वो धनुर्धन और कोई नहीं एकलव्य था
यह है भारत की संस्कृति जिसमे गुरुओ का दर्जा हमेशा प्रथम होता है महान था एकलव्य जो केवल अपने गुरु का शिष्य था इस गुरु भक्ति ने उसे महान बनाया था | इस शिष्य  की गुरुभक्ति ने   गुरुद्रोण के उस  आशीष को भी काट दिया था जिसमे गुरुद्रोण ने अर्जुन महान धनुर्धन होने का वचन दिया था |    इसलिए कहते है गुरु से ज्यादा गुरु की भक्ति महान है |
जय हिन्द,  जय  भारत ,
जय गुरु देव , जय  एकलव्य  |

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