ॐ का जप कब फल देता है
शिवपुराण कथा अनुसार
शिवपुराण कथा अनुसार आर्द्रा नक्षत्र की चतुर्थदर्शी को यदि प्रणव का जप किया जाये तो यह अक्षय फल देने वाला होता है सूर्य की संक्रांति से युक्त महा आर्द्रा नक्षत्र में एक बार किया हुवा प्रणव जप कोटि गुने जप का फल देता है |
शिवपुराण कथा अनुसार ॐ को ही प्रणव बताया गया है |
शिवपुराण कथा अनुसार मृगशिरा नक्षत्र का अंतिम भाग एवं पुनर्वसु का आदि भाग पूजा , होम और तर्पण के लिए सदा आर्द्रा के सामान ही होता है |
शिवपुराण कथा अनुसार शिव लिंग के दर्शन प्रभातकाल में ही प्रातः और संगव (मध्याहन के पूर्व ) काल में करना चाहिए | सूर्योदय के पहले के समय को प्रात:काल कहते हैं। यह समय लगभग 4 बजे से 5 बजे तक का होता है। दिन – रात में परिवर्तन के कारण इस समय में आधा घण्टा का हेर फेर हो सकता है ।
शिवपुराण कथा अनुसार दर्शन एवं पूजा के लिए निशीथव्यापानी अथवा प्रदोषव्यापिनी चतुर्दर्शी तिथि उत्तम है | पूजा के लिए मूर्ति की अपेक्ष लिंग का स्थान ऊचा है ||
नूपुर केयूर किरीट, मणिमय कुण्डल, यज्ञोपवीत, उत्तरीय वस्त्र,पुष्प माला, रेशमी वस्त्र, हार, मुद्रिका , पुष्प, ताम्बूल, कपूर , चन्दन, एवं अगुरु का अनुलेप, धुप, दीप, श्वेत छत्र , व्यंजन,ध्वजा,चवर आदि |
शिवपुराण कथा अनुसार
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